मिरे महबूब की शोखियों कि मैं क्या बात कहूं
सब नज़ारों से, चाँद-तारों से हसीं मेरा यार है
नजरें बिछाए बैठें हैं हम राह-ए-गुजर पे
इक झलक पाने को उनकी ये दिल बेक़रार है
पतझड़ था दिल का मौसम उनके आने से पहले
उनके आने से दिल पे छायी बसंत बहार है
उनके खातिर में छोड़ दूं हसके ये सारा जहाँ
इश्क के सजदे में दिल क्या जाँ भी निसार है
इश्क के दम से ही मुकम्मल है पूरी कायनात
इश्क है इबादत और महबूब परवरदिगार है
4 comments:
accha likha hai tumne...tumhari esse bhi behtar ghazal ka intzaar hai hume...
Thanks
Deepti ji
bolo bolo kaun hai vo??? mire hai ya mere??linguistics wale galti karenge
Abhi to Talash jari
Dear!! Tumhari Nazar koi hai kya !!!
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