देखकर रूखे दिलदार पेशानी पे नूर आ जाता है
नजर से नजर होते ही चार इक शुरूर छा जाता है
इश्क नशा है बिन पीये करता है असर शराब सा
रात की बात नहीं ये दिन में तारे दिखा जाता है
हसीं महबूब कि लगती हैं गुलाबी बहारों कि अदा
बाद उनके बहारों का चेहरा भी मुरझा जाता है
हम तो यूं ही दिल्लगी कर बैठे आँखों-आँखों में
खबर न थी कि इश्क में शोलों पे चला जाता है
इश्क नहीं क्रिकेट कि जब चाहा बल्ला पकड़ लिया
ये ख़ुशी का समन्दर है पर अक्सर रूला जाता है
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