Tuesday, January 19, 2010

मतलब परस्ती/selfishness

जिन्दगी अब तो रहती है खुद से जुदा-जुदा सी
ख़ुशी को लगी नजर, रहती है अब खफा-खफा सी

हर मंजर था कभी जिन्दगी जीने का सबब
हर नजर आज लगती है बोलो, क्यों बेवफा सी ?

धुंध ही धुंध आती है नजर हद-ऐ-निगाह तक
जिन्दगी सबको आज लगती है क्यों इक जफा सी ?

हर शख्स जहाँ का हो गया है क्यों शोला जुबाँ ?
रौशनी आजकल करती है क्यों अंधेरों से बावफा सी ?

शहर के निजाम को देखो महगाई खा गयी भाई
बाद इसके हुक्मरानों को जमाखोरों से है क्यों वफ़ा सी ?

मतलब परस्ती इन्सान को लाई है इस मुकाम पर
हर चेहरे में शैतानी सूरत नजर आती है सफा सी

2 comments:

gyaneshwaari singh said...

kya bat hai bahut asardaar likha hai...

achi lagi gazal

"Sonu Chandra "UDAY" said...

Shukria apka

Sakhi ji