जिन्दगी अब तो रहती है खुद से जुदा-जुदा सी
ख़ुशी को लगी नजर, रहती है अब खफा-खफा सी
हर मंजर था कभी जिन्दगी जीने का सबब
हर नजर आज लगती है बोलो, क्यों बेवफा सी ?
धुंध ही धुंध आती है नजर हद-ऐ-निगाह तक
जिन्दगी सबको आज लगती है क्यों इक जफा सी ?
हर शख्स जहाँ का हो गया है क्यों शोला जुबाँ ?
रौशनी आजकल करती है क्यों अंधेरों से बावफा सी ?
शहर के निजाम को देखो महगाई खा गयी भाई
बाद इसके हुक्मरानों को जमाखोरों से है क्यों वफ़ा सी ?
मतलब परस्ती इन्सान को लाई है इस मुकाम पर
हर चेहरे में शैतानी सूरत नजर आती है सफा सी
2 comments:
kya bat hai bahut asardaar likha hai...
achi lagi gazal
Shukria apka
Sakhi ji
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