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Friday, November 26, 2010
Sunday, October 31, 2010
Wednesday, May 19, 2010
Tuesday, April 20, 2010
Saturday, March 27, 2010
Thursday, March 18, 2010
Tuesday, March 9, 2010
Wednesday, February 17, 2010
Tuesday, February 2, 2010
Monday, February 1, 2010
Wednesday, January 27, 2010
रात / Night
याद में तेरी नीद न आयी मुझे सारी रात
करवटें बदल-बदल कर मैंने गुजारी रात
आँखों में तेरे ही ख्वाब संजोता रहा मैं
तेरी सूरत चाँद में देखकर मैंने गुजारी रात
पुंछा जब चाँद ने रात कि जहाँ फ़िदा-ए-चाँद
पर किसकी? खुमारी में पूरी है तू ने गुज़री रात
मैंने कहा खूबसूरत है तू नगीना-ए-आसमां
पर वो हुस्न है कायनात, है जिसकी खुमारी रात
तेरे गुलाबी सुर्ख होंठों का नशा था वो यक़ीनन
कि सहरा को गुलशन नजर आया सारी रात
तेरी उल्फत में हो गया है दीवाना-सा "उदय"
रेत को बिस्तर समझकर मैंने कल गुजारी रात
करवटें बदल-बदल कर मैंने गुजारी रात
आँखों में तेरे ही ख्वाब संजोता रहा मैं
तेरी सूरत चाँद में देखकर मैंने गुजारी रात
पुंछा जब चाँद ने रात कि जहाँ फ़िदा-ए-चाँद
पर किसकी? खुमारी में पूरी है तू ने गुज़री रात
मैंने कहा खूबसूरत है तू नगीना-ए-आसमां
पर वो हुस्न है कायनात, है जिसकी खुमारी रात
तेरे गुलाबी सुर्ख होंठों का नशा था वो यक़ीनन
कि सहरा को गुलशन नजर आया सारी रात
तेरी उल्फत में हो गया है दीवाना-सा "उदय"
रेत को बिस्तर समझकर मैंने कल गुजारी रात
Friday, January 22, 2010
ये ज़माना / This world
ये ज़माना तो है तरक्की पसंदों का दुश्मन
राह मन की चलो, लोग जलते हैं जलने दो
गिरतों को गिरना है लोगों की पुरानी आदत
पर बात तो तब है की गिरतों को संभलने दो
नफरत की मशाले लिए कुछ लोग घूमते हैं
कर लो कैद इनको घर से बाहर न निकलने दो
अमन के चराग देखो, दोस्तों हरगिज़ न बुझने पायें
रुख हवाओं का मोड़ दो, इन चरागों को जलने दो
दर्द तुम कब तक सहोगे? पीछे कब तक रहोगे ?
हिम्मत करो खुद को बाहर दायरों से निकलने दो
राह मन की चलो, लोग जलते हैं जलने दो
गिरतों को गिरना है लोगों की पुरानी आदत
पर बात तो तब है की गिरतों को संभलने दो
नफरत की मशाले लिए कुछ लोग घूमते हैं
कर लो कैद इनको घर से बाहर न निकलने दो
अमन के चराग देखो, दोस्तों हरगिज़ न बुझने पायें
रुख हवाओं का मोड़ दो, इन चरागों को जलने दो
दर्द तुम कब तक सहोगे? पीछे कब तक रहोगे ?
हिम्मत करो खुद को बाहर दायरों से निकलने दो
Thursday, January 21, 2010
रूखे दिलदार/ Face of Love
देखकर रूखे दिलदार पेशानी पे नूर आ जाता है
नजर से नजर होते ही चार इक शुरूर छा जाता है
इश्क नशा है बिन पीये करता है असर शराब सा
रात की बात नहीं ये दिन में तारे दिखा जाता है
हसीं महबूब कि लगती हैं गुलाबी बहारों कि अदा
बाद उनके बहारों का चेहरा भी मुरझा जाता है
हम तो यूं ही दिल्लगी कर बैठे आँखों-आँखों में
खबर न थी कि इश्क में शोलों पे चला जाता है
इश्क नहीं क्रिकेट कि जब चाहा बल्ला पकड़ लिया
ये ख़ुशी का समन्दर है पर अक्सर रूला जाता है
नजर से नजर होते ही चार इक शुरूर छा जाता है
इश्क नशा है बिन पीये करता है असर शराब सा
रात की बात नहीं ये दिन में तारे दिखा जाता है
हसीं महबूब कि लगती हैं गुलाबी बहारों कि अदा
बाद उनके बहारों का चेहरा भी मुरझा जाता है
हम तो यूं ही दिल्लगी कर बैठे आँखों-आँखों में
खबर न थी कि इश्क में शोलों पे चला जाता है
इश्क नहीं क्रिकेट कि जब चाहा बल्ला पकड़ लिया
ये ख़ुशी का समन्दर है पर अक्सर रूला जाता है
Tuesday, January 19, 2010
मतलब परस्ती/selfishness
जिन्दगी अब तो रहती है खुद से जुदा-जुदा सी
ख़ुशी को लगी नजर, रहती है अब खफा-खफा सी
हर मंजर था कभी जिन्दगी जीने का सबब
हर नजर आज लगती है बोलो, क्यों बेवफा सी ?
धुंध ही धुंध आती है नजर हद-ऐ-निगाह तक
जिन्दगी सबको आज लगती है क्यों इक जफा सी ?
हर शख्स जहाँ का हो गया है क्यों शोला जुबाँ ?
रौशनी आजकल करती है क्यों अंधेरों से बावफा सी ?
शहर के निजाम को देखो महगाई खा गयी भाई
बाद इसके हुक्मरानों को जमाखोरों से है क्यों वफ़ा सी ?
मतलब परस्ती इन्सान को लाई है इस मुकाम पर
हर चेहरे में शैतानी सूरत नजर आती है सफा सी
ख़ुशी को लगी नजर, रहती है अब खफा-खफा सी
हर मंजर था कभी जिन्दगी जीने का सबब
हर नजर आज लगती है बोलो, क्यों बेवफा सी ?
धुंध ही धुंध आती है नजर हद-ऐ-निगाह तक
जिन्दगी सबको आज लगती है क्यों इक जफा सी ?
हर शख्स जहाँ का हो गया है क्यों शोला जुबाँ ?
रौशनी आजकल करती है क्यों अंधेरों से बावफा सी ?
शहर के निजाम को देखो महगाई खा गयी भाई
बाद इसके हुक्मरानों को जमाखोरों से है क्यों वफ़ा सी ?
मतलब परस्ती इन्सान को लाई है इस मुकाम पर
हर चेहरे में शैतानी सूरत नजर आती है सफा सी
Monday, January 11, 2010
मिरे महबूब/My Love
मिरे महबूब की शोखियों कि मैं क्या बात कहूं
सब नज़ारों से, चाँद-तारों से हसीं मेरा यार है
नजरें बिछाए बैठें हैं हम राह-ए-गुजर पे
इक झलक पाने को उनकी ये दिल बेक़रार है
पतझड़ था दिल का मौसम उनके आने से पहले
उनके आने से दिल पे छायी बसंत बहार है
उनके खातिर में छोड़ दूं हसके ये सारा जहाँ
इश्क के सजदे में दिल क्या जाँ भी निसार है
इश्क के दम से ही मुकम्मल है पूरी कायनात
इश्क है इबादत और महबूब परवरदिगार है
सब नज़ारों से, चाँद-तारों से हसीं मेरा यार है
नजरें बिछाए बैठें हैं हम राह-ए-गुजर पे
इक झलक पाने को उनकी ये दिल बेक़रार है
पतझड़ था दिल का मौसम उनके आने से पहले
उनके आने से दिल पे छायी बसंत बहार है
उनके खातिर में छोड़ दूं हसके ये सारा जहाँ
इश्क के सजदे में दिल क्या जाँ भी निसार है
इश्क के दम से ही मुकम्मल है पूरी कायनात
इश्क है इबादत और महबूब परवरदिगार है
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